SUBH AWSAR (सुभ अवसर)

लेखक - प्रकाश बास्की

Note: This Article is Published after getting permission of Author.

विषय सूची

  1. आदिवासी शादी
  2. नन्हा मेहमान
  3. सोहराय

प्रस्तावना

इस किताब को खरीदने के लिए धन्यवाद। यह किताब आदिवासी परमंपरा का उल्लेकख करता है। आदिवासी समाज के रिती रिवाज को विस्तार से बताया गया है। इस किताब का उद्देश्य पाठको को आदिवासी समाज से जुड़ी परमपरा के बारे में बताना है। यह किताब आदिवासी पीढ़ी के माता-पिता एवं बच्चो के लिए भी लाभदायक है। माता-पिता अपने बच्चो को इस किताब से अनेक जानकारी दे सकते है।

मैं अपने माता-पिता और गुरु का आभार वक्यत करता हूँ। मेरी माता ( मुनी बास्की ) की इच्छा थी की अपनी परमपरा के बारे में लिख कर रखे ताकी मैं पढ़कर इनका पालन कर सकू । माँ को समय ना मिलने के कारण वह कभी लिख नहीं पायी । मेरे गुरु ने मुझे किताब लिखने के लिए कहा था तो मैने यह किताब लिखी साथ में माँ की इच्छा भी पूरी की। आश करता हूँ इस किताब से आपको मूल्यवान जानकारी मिलेगी।

आदिवासी शादी

अगर लड़के को लड़की की तलाश है।
रायबार हाड़ाम या रायबार बूढ़ी से समंपर्क किया जाता है और उनसे रिसता खौजने को कहा जाता है, उनके श्रेणी के अनुसार, यदि उन्हे कोई रिसता मिलता है या उन्हे कोई जानकारी होती है तौ वह उन्हे बता देते है। दी गयी जानकारी अगर उचित लगे तो लड़की वालो को रिसते की जानकारी दी जाती है।
उचित दिन एंव तारीख तय की जाती है लड़की के परिवार से मिलने के लिये।
तय तारीख के दिन तय समय पर लड़का के पिता चाचा एंव मामा लड़की के घर जाते है।
अगर लड़की को लड़के की तलाश है।
रायबार हाड़ाम या रायबार बूढ़ी से समपर्क किया जाता है और उनसे रिसता खौजने को कहा जाता है, उनके श्रेणी के अनुसार, यदि उन्हे कोई रिसता मिलता है या उन्हे कोई जानकारी होती है तौ वह उन्हे बता देते है। दी गयी जानकारी अगर उचित लगे तो लड़के वालो को रिसते की जानकारी दी जाती है।
उचित दिन एवं तारीख तय की जाती है लड़की के परिवार से मिलने के लिये।
लड़की के घर पर स्वागत
लड़का के पिता एवं अनय सभी को घर के अँगना मे बिठाया जाता है।
रायबार हाडाम या रायबार बूढ़ी को लौटा मे पानी दिया जाता है लड़की के माँ के द्वारा अन्यथा लड़की के नाना या भाभी या माँझी बूढ़ी द्वारा। सभी को जौहार करते हुए।
इसके बाद लड़की सहेली संग आती है और लड़के के पिता चाचा मामा को जौहार करती है।
आवशसक बदलाव
लड़का के  पिता को लड़की से शैक्षिक एवं अनय गुण के बारे मे विसतार से  पूछना चाहिए तभी आप पसंद या ना-पसंद करे।
लड़का के पिता चाचा एवं मामा घर की बड़ी मे जाकर आपस मे बात करते है और एक दूसरे की राय लेते है और फैसला करते है कि उन्हे लड़की पसंद है या नही।

अगर लड़का के परिवार को लड़की पसंद आती है तो लड़की सहेली संग सभी के पैर  धोती है।
लड़की पछ- गांव के प्रधान लड़का के परिवार वाले को नदी या तलाब नहाने ले जाते है। साथ मे उन्हे  साबुन और कपडा दिया जाता है।( केवल पुरुष )
स्नान करने के बाद घर के आँगन मे उन्हे चाय नास्ता कराया जाता है। नास्ते मे शराब एवं चखना दिया जाता है। चखने मे मटर घूगनी अन्यथा चनाचूर परोसा जाता है। अथवा अपने पसंद अनुसार।
बातचीत जारी.. अनय अपने कामो मे वयसतथ
गांव के प्रधान लड़के के परिवार वालो को उनके रिशतेदार के यहाँ घुमाने ले जाते है अगर उनका घर नजदीक पड़ता हो तो।
दोपहर के वक्त उन्हे खाना दिया जाता है खाने मे दाल चावल चौखा दिया जाता है ।अपने पसंद अनुसार मिट मछली भी दिया जा सकता है।
कुछ देर के बाद लड़के वाले को घर के अंदर बैठाया जाता है और वे घर के सेनेर की गिनती करते है।
शाम या रात मे लड़का के परिवार वालो को विदा करते है। जौहार करते हुए।
कपड़ा पहनाई रस्म
कोई भी दिन तय कर लड़की को कपड़ा ( साड़ी ) दिया जाता है और गहने पहना दिये जाते है।
कपड़ा पहनाई रस्म लड़की देखने एवं पसंद करने के दिन भी किया जाता है लेकिन इसके लिए पहले से सहमती ली जाती है। अगर सहमती नही बनती है तो अलग दिन तय किया जाता है फिर भी सहमती न बने तो यह रस्म नही होती है।
रायबार हाड़ाम या बूढ़ी लड़का के परिवार वालो को लड़की के घर ले जाते है और सारी प्रक्रिया पहले की तरह होती है, जिसमे  रायबार हाड़ाम को लौटा मे पानी दिया जाता है और सभी को जौहार किया जाता है।
इसके बाद नहाकर नास्ता किया जाता है और दोपहर के खाने के लिए बकरी की बली दी जाती है।
शाम मे लड़के के परिवार वालो को विदाई दी जाती है।
लड़की के परिवार वालो की बारी
दिन एवं तारीख तय कर लड़की वाले लड़के के घर जाते है, रायबार हाडाम या बूढ़ी उनकी अगवाई करते है।
लड़के की माँ या भाभी रायबार हाड़ाम या बूढ़ी को पानी देती है और सभी को जौहार करती है।
लड़का भी सामने आकर लड़की के पिता चाचा मामा एवं अनय को जौहार करता है।
नहाने एवं खाने पीने की प्रक्रिया पहले जैसी।
आवशयक बदलाव
लड़की के पिता को लड़के से शैक्षिक एवं अनय गुण के बारे मे विसतार से पुछना चाहिए। तभी पसंद या ना-पसंद करे।
अगर लड़की के परिवार वालो को लड़का पसंद आता है तो लड़के वाले उन्हे तीन रूपय देते है विदाई से पहले।

शादी की तारीख

रायबार हाड़ाम या बूढ़ी दोनो परिवारो की बातो का आदान-प्रदान करते रहते है।
शादी का तारीख एवं महीना तय किया जाता है। लड़के वाले तारीख रखते है और लड़की वाले सहमती दे देते है अगर उन्हे कोई दिक्कत न हो तो।
लड़के वाले पच्चीस किलो चावल भेजते है रायबार हाडाम या बुढ़ी के द्वारा।
लड़की पछ की तरफ से गाँव के प्रधान एवं गाँव के अनय लोग चावल को तोलते है।
अरवा धागा को हल्दी मे मिलाकर धागा मे गांठ बनाया जाता है। तीन गांठ अगर शादी तीन दीन बाद हो तो, पाँच गांठ अगर शादी पाँच दिन बाद हो तो, सात गांठ अगर शादी सात दीन बाद हो तो।
अरवा धागा ( गिरा ) को लकड़ी मे बाँधकर गाँव के प्रधान सभी गाँव-वालो के घर जाकर उन्हे शादी की तारीख बताते है।

मड़वा भोज

शादी की तारीख से एक दिन पहले गाँव वाले लड़की के घर आकर अगँना मे मड़वा बनाते है। गाँव वालो को इसके  लिए भोज दिया जाता है। लड़का पछ के तरफ भी उसके घर पर गाँव वाले अँगना में मड़वा बनाते है और उन्हे भोज दीया जाता है।

शादी के दिन
बाराती लड़की के गाँव पहुँचते है, और उन्हे गाँव के अंतिम छोर पर पेड़ के नीचे ठहराया जाता है गाँव प्रधान के द्वारा।
गाँव  के प्रधान बरातीयो के लिए नास्ता लाते है।
गाँव के प्रधान बारातीयो को बरतन  देते है खाना बनाने के लिए और लड़की वाले पतीले देते है। लड़के वाले चावल और खसशी अपने साथ लाते है। इसे डेरा खसशी भी कहते है कयोंकि बाराती गाँव के छोर पर डेरा डालते है जबतक लड़की वाले सारी रस्मे पुरी नही कर लेते। इसी बीच खसशी को बनाकर खाया जाता है और बाराती वाले तैयार होते है।
हल्दी की रस्म, लड़की पछ के घर पर
गाँव की दो कुँवारी लड़की ( तितरी कुड़ी ) पहले गाँव के प्रधान को मड़वा के नीचे हल्दी लगाती है।
फिर लड़की के माता पिता को
उसके बाद चाचा चाची को
अब दुल्हन को हल्दी लगाया जाता है। उसकी माँ पहले लगाएगी फिर उसकी दो चाची
हल्दी दुल्हन को तीन बार मड़वा के नीचे और तीन बार घर के अंदर लगाया जाता है।
दुल्हन की दीदी या बुआ मड़वा के नीचे तीन मड़ोली ( रँगोली ) बनाती है और उसे साल के पतरी से ढक देती है।
दुल्हन के जीजा या फूफा उसे गोदी मे उठाकर साल के एक पतरी के उपर बैठा देते है, और दुल्हन अपने दो पैर बाकी दो पतरी पर रखती है।
फिर तितरी कुड़ी दूलहन के सर के उपर हलदी कपडा रखती है। हलदी कपडे मे शरशो रख उसे हिलाती है। इसी वकत नाई ( लपित ) दूलहन  के नाखुन काटता है दायी छोटी उँगली छोड कर।
फिर तितरी कुड़ी दूलहन की आँखे बंद करती है और उसे अपने दोनो हाथो को पीठ पिछे रखने को कहती है और लपित दाये छौटो उँगली पर काट लगा देता है।
हलदी कपडा हटाकर दूलहन को खडा किया जाता है।
जीजा जी अरवा धागा को दूलहन के पैर की उँगली पर बाँध कर धागे को कान तक खीचकर नापते है। धागे पर कचची हलदी लगाकर धागे को साल की टहनी पर लपेट कर अपने पास रखते है।

तितिर कुड़ी अब दूलहन को कमरे मे ले जाती है।
दा बापला की तैयारी
गाँव के प्रधान ( मंझी हाडाम ) को बुलाया जाता है और वे दो कलसी मे सिंदूर लगाते है और अरवा धागा बाधते है।
लडकी की माँ कलसी मे एक किलो ( मि शैर )मुड़ही डालती है।
दा बापला के लिए तितरी कुड़ी कलसी उठाकर अपने सर पर रखती है, दूलहन की माँ तलवार  और एक चाची धनुष  तथा दूसरी चाची तीन तीरे और जीजा जी अरवा धागा, अंडा और एक रूपये लेकर कुँआ या तलाब ढोल बाजे के साथ जाते है।
मंझी हाडाम आगे-आगे चलते है, उनके पीछे तितरी कुड़ी, तितरी कुड़ी के पीछे दूलहन की माँ, माँ के पीछे दोनो चाची और अंतिम मे दूलहन के चाचा रहते है।
तलाब या कुँआ के पास जीजा चुवाड़ी बनाते है और उसमे पानी भरते है। चुवाड़ी  के किनारे तीन तीर गाडते है और उन तीरो पर अरवा धागा गोल-गोल घुमाकर बाँधते है। य वही अरवा धागा है जो हलदी की रसम के समय दूलहन की पौर की उँगली पर बाँधाकर कानो तक खीचकर नापा गया था।
चुवाड़ी के बीच मे एक रूपये एंव अंडा गाड़ दिया जाता है।
बाद मे जीजा लौटा मे पानी भरते है और सारी चीजौ को समेटते है और सभी घर वापस आते है उसी क्रम मे। ढौल बाजे बजते हुए। रासते मे दूलहन की माँ और दौनो चाची आपस मे तलवार धनुष और तीरो की अदला बदली करते है और घर पहूँचने से पहले वापस माँ की हातौ मे तलवार और चाची की हातौ मे धनुष एंव तीर होता है।
अब मड़वा के नीचे दूलहन के पिता दूलहन के सर के उपर तलवार रखते है और  जीजा तलवार पर लौटे का पानी डालते है और दूलहन की माँ पानी पी जाती है।
उसके बाद एक आम के पतते पर कचचा हलदी और अरवा चावल रखा जाता है और पतते को मोड़कर अरवा धागा से बाँधाकर दूलहन की दायी हाथ मे बाँध दी जाती है।
आवशयक जानकारी
हल्दी की रस्म और दा बापला लड़के वालो के यहाँ भी किया जाता है। रस्म करने बाद ही बरातीयो को लेकर शादी के लिए जाते है।

बारातीयो का सवागत

गाँव के प्रधान और दूलहन की माँ  सराती सँग दूलहे की सवागत के लिए ढोल बाजे के साथ जाते है। गाँव के प्रधान उनकी अगवाई करते है।

बरातीयो और सरातीयो का मिलन होता है।
बुआ या बड़ी बहन दुल्हा को सामने लाती है और दुल्हन की माँ दुल्हा के पैर धोती है।
चटाई बिछाकर दुल्हन की माँ बैठ जाती है और दुल्हन की बड़ी बहन या बुआ दूल्हे  को माँ के पास लाते है और जौहार करते है।
दुल्हा दुल्हन की माँ को जौहार कर उनकी गोद  पर बैठ जाता है।
दुल्हन की माँ दुल्हे का मूँह धोकर गुड़ खिलाती है फिर मुँह धुलाकर पानी पिलाती है। फिर उठकर जौहार करता है।
दूलहे का कुँवारा साथी ( लुमता ) भी दुल्हन की माँ को जौहार कर उनकी गोद पर बैठ जाता है और उसे भी मुँह धुलाकर गुड़ खिलाती है फिर मुँह धुलाकर पानी पिलाती है। फिर उठकर जौहार करता है।
इसी प्रक्रिया को दुल्हन की दो चाची करती है। चाची चटाई पर बैठ जाती है और दुल्हन की बड़ी बहन या बुआ दुल्हा को लाती है और चाची को जौहार करती है। दुल्हा चाची को जौहार कर गोदी मे बैठ जाता है और आगे की प्रक्रिया पहले जैसी होती है।
यह प्रक्रिया अब दुल्हन की दूसरी चाची करती है।
प्रक्रिया पूरी  होने पर अब दुल्हन की बड़ी बहन या बुआ दूलहे एंव लुमते को गाँव हर घर ले जाती है और गाँव वाले दुल्हे एंव लुमते को गुड़ या चीनी खिलाते है।
इस प्रकार से दुल्हा एंव बराती दुल्हन के घर के दरवाजे पर पहुँचते है।
दरवाजे पर चटाई बिछाकर दुल्हे को बिठाया जाता है और दुल्हन की  माँ और चाची उसे हल्दी लगती है।
दुल्हे की होने वाली साली उसके गोद पर पीड़ा रख देती है और ताल पत्ते की कैंची व खूर से दाढ़ी काटती है।
बरातीयो की और छाई फेंकी जाती है।
दुल्हन की बड़ी बहन या बुआ दुल्हे को अब नहलाते है।
लड़की वाले दुल्हे को हल्दी कपड़ा देते है। यह वही कपड़ा है जो हल्दी की रस्म के वक्त तितरी कुड़ी दुल्हन के सर के उपर रखती है।
इधर दुल्हे की होने वाली साली दुल्हे के भींगे कपडे लेकर भाग जाती है।
दुल्हन के जीजा दुल्हन के भाई को अपने कंधे पर चढ़ाकर घर के बाहर कूल्ही मे लाते है।
दुल्हे के जीजा भी दुल्हे को कंधे पर उठा लेते है। इसके बाद दुल्हा अपने होने वाले साले से हाथ मिलाता है और उसे धोती से पगड़ी बाँधता है।

पगड़ी बाँधते वक्त दुल्हा तुरंत साले का मुँह बंद कर देता है नही तो साला उसे थूक देगा।
लड़के वालो की और से एक टोकरी मे तीन सफेद खादी कपड़े एक हल्दी कपड़ा, सिंदुर काजल एंव कच्ची हल्दी दी जाती है। सफेद कपड़े दुल्हन की बड़ी माँ, दादी एंव नानी के लिए होता है, बाकी चीजे दुल्हन के लिए होती है।
दुल्हन का भाई टोकरी को अंदर कमरे मे ले जाता है और दुल्हन हल्दी कपड़े पहन कर लंबाई एंव फीट्टीग की जाँच करती है। 
उधर दुल्हे का भाई दूसरे कमरे मे शराब पीता है और दुल्हन के त्तैयार होने का इंतजार करते है।
फिर कुछ देर बाद दुल्हन को स्मपूरण रूप से तैय्यार कर दिया जाता है। 
दूलहन टौकरी के गोल चक्कर लगाकर उसमे पीछे से बैठ जाती है।
दूलहे का भाई दूलहन को टौकरी समेत उठाकर दरवाजे के बाहर लाता है।
दूलहा के जीजा या फूफा दूलहे को उठाकर कंधे पर रखते है।
फिर दूलहा दूलहन हाथ मिलाते है।
दूलहा दूलहन को लौटे मे पानी एंव आम का पत्तता दिया जाता है। पहले दूलहा आम के पत्तते से दूलहन पर तीन बार पानी छीड़कता है। उसके बाद दूलहन दूलहे पर तीन बार आम के पत्तते से पानी छीड़कती है।
दूलहे के पिता दूलहे को एक साल के पत्तते मे सिँदूर देते है और दूलहा दूलहन की माँग पर तीन बार सिँदूर लगाता है फिर सिँदूर से भरे पत्तते को सर पर रगड़ देता है।
दूलहे के पिता पत्तते को अपनी धोती पर बाँधकर रख कर लेते है।
दूलहन को टौकरी से उतार कर भाई टौकरी लेकर नाचता है।
आरती
दूलहन की माँ आरती की थाली लाती है। थाली मे सिँदूर, सरसो का तेल ,कच्चा पीसा हुआ हल्दी, दीया, धूप घास, धान और लकडे का कंघी होता है।
दूलहन की माँ दूलहन की आरती करती है फिर दूलहे की फिर लुमते की फिर दूलहे के जीजा की।
अब दूलहन की बड़ी चाची और छोटी चाची आरती करती है अपनी पारी-पारी से।
आरती के वक्त माँ चाची दूलहन दूलहे लुमते और दूलहे के जीजा को हलदी और तेल लगाती है और धूप घास उनपर फैकती है।

आरती के बाद छोटी चाची गोबर का गोला घर के अंदर फेकती है और अरवा चावल का गोला एंव शराब के चावल का गोला बारातियो के उपर फेकती है।
दूलहन की बड़ी बहन या बुआ एक मिट्टी के ढक्कन मे अँगरा रखकर ढक्कन को साल के पत्तते से पकड़कर लाती है और दूलहे दूलहन के बीच रखती है।
भेलडे की लकड़ी की एक छोर को साल के पत्तते से ढक्कर दूलहन की माँ अँगरे के उपर गोल गोल घुमाती है और अँगरे मे एक बार ठोक कर हाथ से धुँए को अपनी तरफ कर आशीरवाद लेती है।
बड़ी चाची और छोटी चाची भी इस प्रक्रिया को करती है।
दूलहन की बड़ी बहन या बुआ अँगरे मे पानी डाल देती है और दूलहा दूलहन अँगरे को डेंग कर घर के अंदर आ जाते है।
अँगना मे दूलहा दूलहन को तीन बार घुमाया जाता है और मड़वा के नीचे चटाई बिछाकर दोनो को बिठाया जाता है।
दूल्हन की माँ, बड़ी चाची, छोटी चाची अपनी पारी-पारी से दूलहा दूलहन लुमता एंव दूलहे के जीजा को हलदी एंव तेल लगाती है।
तितरी कुड़ी भी यह प्रक्रिया कर सकती है।
दूल्हा दूल्हन को मड़वा के नीचे तीन चक्कर लगवाया जाता है और उनके गंठबंधन खोल दिये जाते है।
दूल्हन को कमरे मे ले जाते है और दूल्हा बारतीयो सँग वापस डेरा चला जाता है।
बंदानी की रसम लडकी पछ
गाँव के प्रधान ( मंझी हाडाम ) और जग मंझी को बुलाया जाता है। वे मडवा के नीचे बैठकर शराब पीते है और चरचा करते है। इसके बाद दूल्हन के पिता से बली के लिये बकरी की माँग रखते है।
मड़वा के नीचे बकरी की बली चढा दी जाती है।
दूल्हन की बड़ी बहन या बुआ बकरी की सर को चावल वाली पतरी मे उठाकर कमरे मे रख आती है और बली स्थल को साफ कर गोबर लगाती है फिर रँगौली बनाकर पटीये से ढक देती है ताकि उसे कोई पैर न दे।
मंझी हाडाम दो कलसी मे सिँदूर लगाते है और तीतरी कुड़ी कलसी मे पानी भरकर लाती है।
दो अलग अलग चूल्हे मे दो हड़िया चढाई जाती है और उसमे कलसी का पानी डाल दीया जाता है।

दूल्हन के परिवार वाले दूल्हन एंव दूल्हे को बुलाकर उनहे चावल तौलने को कहते है। दोनो एक दूसरे के आँख बंद कर डालिये ( टौकरी ) से उचित मात्रा मे चावल निकालकर अपने अपने  सूप मे रखते है।
दूलहा या तो दूल्हन की सूप की गठरी तोड़ दी जाती है पहचान के लिए।
दोनो अपना अपना सूप उठाकर एक साथ अपने अपने नाम के हड़िये मे चावल डाल देते है और जौहार करते है।
अब दूलहा दूल्हन लुमता एंव दूलहे के जीजा को बंदानी के लिए मड़वा के नीचे तीन चक्कर लगवाकर बिठा दिया जाता है।
बंदानी शूरू होने से पहले दूल्हन के माता पिता सभी मेमहानो को धोती और शाड़ी देते है।
मंझी हाडाम दूल्हा दूल्हन लूमता एंव दूलहे के जीजा को बंदानी देकर बंदानी की शुरूआत करते है।
बारी-बारी से सभी मेमहान बंदानी देते है। दूल्हन को सबसे ज्यादा बंदानी दी जाती है।
बंदानी होने के बाद दूल्हा दूल्हन लुमता और दूल्हे के जीजा मड़वा के तीन चक्कर लगाकर अंदर कमरे मे चले जाते है। फिर दूलहा लुमता एंव जीजा डेरा चले जाते है।
दूल्हन के जीजा बंदानी के सामान को उठाकर कमरे मे रख देते है और उसकी जिम्मेदारी दूल्हन के पिता को देते है।
दूल्हा दूल्हन लुमता एंव दूल्हे के जीजा को बुलाकर खाना खिलाया जाता है।
कूछ देर बाद बारातीयो और सारतीयो को खाना खिलाया जाता है। खाने मे चावल एंव बकरी का मांश दीया जाता है। केवल बकरी के धड़ के हिस्से का मांश ( जिसकी बली दी गयी थी ) 
बाराती अपने डेरा चले जाते है और मंझी हाडाम एंव जग मांझी को बुलाकर उनहे खाना खिलाते है उनके सम्मान मे। बराती दोनो का धन्यवाद करते है और उनसे पतीले एंव कारा ( कडाही ) वापस ले जाने की विनती करते है।
विदाई का सम्मारोह
विदाई करने की त्यैयारी की जाती है ।
दूल्हा लुमता एंव दूल्हे के जीजा बरातीयो संग मड़वा मे पहुँचते है। दूलहन के चाचा जेठा और अन्य रिशतेदार एंव सभी गाँव के लोग मड़वा मे जमा होते है।

इधर कमरे मे दूल्हन की माँ दूल्हन के मुँह मे गूड़ और एक रूपय रखती है। दूल्हन गूड़ और पैसे को अपने माँ के हाथो पर उगल  देती है। माँ गूड़ को खा लेती है और पैसे को धोकर रख लेती है।
वर वधू एंव बाराती सारातीयो को जौहार कर घर के बाहर निकलते है। वर वधू  मंझीथान मे एक लौटा पानी डाल कर आते है। समधी समधीन आपस मे मिलते जूलते है। सभी एक दूसरे को जौहार करते है और बाराती वाले विदा लेते है।
दूलहन के साथ उसकी सहेली बड़ी बहन या बुआ और गाँव से दो औरत एंव दो लड़के साथ जाते है।
दूलहन की माँ एक तूक और एक चौकरी मे दीयाड़ा के साथ बंदानी का समान अपने अनुसार भेजती है।
लमुती बूढी अपने साथ एक किलो ( मि शेर ) मूढ़ी, एक साल के पत्तते की कटोरी मे हल्दी एंव लकड़ी का कंघा ले जाती है।
आगमन
दूल्हा दूल्हन को लेकर अपने गाँव पहुँचता है और सभी गाँव के छोर पर रूक जाते है। ढोल बाजे बजते हुए।
रायबार हाडाम दूल्हा के घर वालो को इतला देते है।
दूल्हे की माँ, चाची, बुआ, फूफा और बहन स्वागत के लिए जाते है।
दूल्हे की माँ सबसे पहले दूल्हे का पैर धोती है फिर लुमते की फिर आखरी मे दूल्हन की।
जीस पानी से दूल्हन के पैर धौये जाते है वह पानी दूल्हे की माँ रख लेती है।
इसके बाद दूल्हे की बड़ी चाची एंव छोटी चाची अपनी बारी-बारी से दूलहे लुमते एंव दूलहन की पैर धोती है।
तितरी कुड़ी एक चटाई बिछाती है और दूल्हे की माँ उस पर बैठ जाती है।
दूल्हे की बड़ी बहन दूल्हे को माँ के पास लाती और जौहार करती है। फीर दूल्हा अपनी माँ को जौहार कर उनकी गोद पर बैठ जाता है।
माँ दूल्हे का मूँह धूलाकर गूड खिलाती है फिर मूँह धूलाकर पानी पीलाती है।
लूमता को भी गूड खीलाया जाता है और पानी पीलाया जाता है।
अंतीम मे दूल्हे की बड़ी बहन दूल्हन को लाती है और जौहार करती है।
दूल्हन दूलहा के माँ को जौहार कर उनकी गोद पर बैठ जाती है। फिर उसे भी मूँह धूलाकर गूड खिलाया जाता है और पानी पीलाया जाता है।

आरती के बाद छोटी चाची गोबर का गोला घर के अंदर फेकती है और अरवा चावल का गोला एंव शराब के चावल का गोला बारातियो के उपर फेकती है।
दूलहन की बड़ी बहन या बुआ एक मिट्टी के ढक्कन मे अँगरा रखकर ढक्कन को साल के पत्तते से पकड़कर लाती है और दूलहे दूलहन के बीच रखती है।
भेलडे की लकड़ी की एक छोर को साल के पत्तते से ढक्कर दूलहन की माँ अँगरे के उपर गोल गोल घुमाती है और अँगरे मे एक बार ठोक कर हाथ से धुँए को अपनी तरफ कर आशीरवाद लेती है।
बड़ी चाची और छोटी चाची भी इस प्रक्रिया को करती है।
दूलहन की बड़ी बहन या बुआ अँगरे मे पानी डाल देती है और दूलहा दूलहन अँगरे को डेंग कर घर के अंदर आ जाते है।
अँगना मे दूलहा दूलहन को तीन बार घुमाया जाता है और मड़वा के नीचे चटाई बिछाकर दोनो को बिठाया जाता है।
दूल्हन की माँ, बड़ी चाची, छोटी चाची अपनी पारी-पारी से दूलहा दूलहन लुमता एंव दूलहे के जीजा को हलदी एंव तेल लगाती है।
तितरी कुड़ी भी यह प्रक्रिया कर सकती है।
दूल्हा दूल्हन को मड़वा के नीचे तीन चक्कर लगवाया जाता है और उनके गंठबंधन खोल दिये जाते है।
दूल्हन को कमरे मे ले जाते है और दूल्हा बारतीयो सँग वापस डेरा चला जाता है।
बंदानी की रसम लडकी पछ
गाँव के प्रधान ( मंझी हाडाम ) और जग मंझी को बुलाया जाता है। वे मडवा के नीचे बैठकर शराब पीते है और चरचा करते है। इसके बाद दूल्हन के पिता से बली के लिये बकरी की माँग रखते है।
मड़वा के नीचे बकरी की बली चढा दी जाती है।
दूल्हन की बड़ी बहन या बुआ बकरी की सर को चावल वाली पतरी मे उठाकर कमरे मे रख आती है और बली स्थल को साफ कर गोबर लगाती है फिर रँगौली बनाकर पटीये से ढक देती है ताकि उसे कोई पैर न दे।
मंझी हाडाम दो कलसी मे सिँदूर लगाते है और तीतरी कुड़ी कलसी मे पानी भरकर लाती है।
दो अलग अलग चूल्हे मे दो हड़िया चढाई जाती है और उसमे कलसी का पानी डाल दीया जाता है।

दूल्हन के परिवार वाले दूल्हन एंव दूल्हे को बुलाकर उनहे चावल तौलने को कहते है। दोनो एक दूसरे के आँख बंद कर डालिये ( टौकरी ) से उचित मात्रा मे चावल निकालकर अपने अपने  सूप मे रखते है।
दूलहा या तो दूल्हन की सूप की गठरी तोड़ दी जाती है पहचान के लिए।
दोनो अपना अपना सूप उठाकर एक साथ अपने अपने नाम के हड़िये मे चावल डाल देते है और जौहार करते है।
अब दूलहा दूल्हन लुमता एंव दूलहे के जीजा को बंदानी के लिए मड़वा के नीचे तीन चक्कर लगवाकर बिठा दिया जाता है।
बंदानी शूरू होने से पहले दूल्हन के माता पिता सभी मेमहानो को धोती और शाड़ी देते है।
मंझी हाडाम दूल्हा दूल्हन लूमता एंव दूलहे के जीजा को बंदानी देकर बंदानी की शुरूआत करते है।
बारी-बारी से सभी मेमहान बंदानी देते है। दूल्हन को सबसे ज्यादा बंदानी दी जाती है।
बंदानी होने के बाद दूल्हा दूल्हन लुमता और दूल्हे के जीजा मड़वा के तीन चक्कर लगाकर अंदर कमरे मे चले जाते है। फिर दूलहा लुमता एंव जीजा डेरा चले जाते है।
दूल्हन के जीजा बंदानी के सामान को उठाकर कमरे मे रख देते है और उसकी जिम्मेदारी दूल्हन के पिता को देते है।
दूल्हा दूल्हन लुमता एंव दूल्हे के जीजा को बुलाकर खाना खिलाया जाता है।
कूछ देर बाद बारातीयो और सारतीयो को खाना खिलाया जाता है। खाने मे चावल एंव बकरी का मांश दीया जाता है। केवल बकरी के धड़ के हिस्से का मांश ( जिसकी बली दी गयी थी ) 
बाराती अपने डेरा चले जाते है और मंझी हाडाम एंव जग मांझी को बुलाकर उनहे खाना खिलाते है उनके सम्मान मे। बराती दोनो का धन्यवाद करते है और उनसे पतीले एंव कारा ( कडाही ) वापस ले जाने की विनती करते है।

विदाई का सम्मारोह

विदाई करने की त्यैयारी की जाती है ।
दूल्हा लुमता एंव दूल्हे के जीजा बरातीयो संग मड़वा मे पहुँचते है। दूलहन के चाचा जेठा और अन्य रिशतेदार एंव सभी गाँव के लोग मड़वा मे जमा होते है।

इधर कमरे मे दूल्हन की माँ दूल्हन के मुँह मे गूड़ और एक रूपय रखती है। दूल्हन गूड़ और पैसे को अपने माँ के हाथो पर उगल  देती है। माँ गूड़ को खा लेती है और पैसे को धोकर रख लेती है।
वर वधू एंव बाराती सारातीयो को जौहार कर घर के बाहर निकलते है। वर वधू  मंझीथान मे एक लौटा पानी डाल कर आते है। समधी समधीन आपस मे मिलते जूलते है। सभी एक दूसरे को जौहार करते है और बाराती वाले विदा लेते है।
दूलहन के साथ उसकी सहेली बड़ी बहन या बुआ और गाँव से दो औरत एंव दो लड़के साथ जाते है।
दूलहन की माँ एक तूक और एक चौकरी मे दीयाड़ा के साथ बंदानी का समान अपने अनुसार भेजती है।
लमुती बूढी अपने साथ एक किलो ( मि शेर ) मूढ़ी, एक साल के पत्तते की कटोरी मे हल्दी एंव लकड़ी का कंघा ले जाती है।
आगमन
दूल्हा दूल्हन को लेकर अपने गाँव पहुँचता है और सभी गाँव के छोर पर रूक जाते है। ढोल बाजे बजते हुए।
रायबार हाडाम दूल्हा के घर वालो को इतला देते है।
दूल्हे की माँ, चाची, बुआ, फूफा और बहन स्वागत के लिए जाते है।
दूल्हे की माँ सबसे पहले दूल्हे का पैर धोती है फिर लुमते की फिर आखरी मे दूल्हन की।
जीस पानी से दूल्हन के पैर धौये जाते है वह पानी दूल्हे की माँ रख लेती है।
इसके बाद दूल्हे की बड़ी चाची एंव छोटी चाची अपनी बारी-बारी से दूलहे लुमते एंव दूलहन की पैर धोती है।
तितरी कुड़ी एक चटाई बिछाती है और दूल्हे की माँ उस पर बैठ जाती है।
दूल्हे की बड़ी बहन दूल्हे को माँ के पास लाती और जौहार करती है। फीर दूल्हा अपनी माँ को जौहार कर उनकी गोद पर बैठ जाता है।
माँ दूल्हे का मूँह धूलाकर गूड खिलाती है फिर मूँह धूलाकर पानी पीलाती है।
लूमता को भी गूड खीलाया जाता है और पानी पीलाया जाता है।
अंतीम मे दूल्हे की बड़ी बहन दूल्हन को लाती है और जौहार करती है।
दूल्हन दूलहा के माँ को जौहार कर उनकी गोद पर बैठ जाती है। फिर उसे भी मूँह धूलाकर गूड खिलाया जाता है और पानी पीलाया जाता है।

आरती के बाद छोटी चाची गोबर का गोला घर के अंदर फेकती है और अरवा चावल का गोला एंव शराब के चावल का गोला बारातियो के उपर फेकती है।
दूलहन की बड़ी बहन या बुआ एक मिट्टी के ढक्कन मे अँगरा रखकर ढक्कन को साल के पत्तते से पकड़कर लाती है और दूलहे दूलहन के बीच रखती है।
भेलडे की लकड़ी की एक छोर को साल के पत्तते से ढक्कर दूलहन की माँ अँगरे के उपर गोल गोल घुमाती है और अँगरे मे एक बार ठोक कर हाथ से धुँए को अपनी तरफ कर आशीरवाद लेती है।
बड़ी चाची और छोटी चाची भी इस प्रक्रिया को करती है।
दूलहन की बड़ी बहन या बुआ अँगरे मे पानी डाल देती है और दूलहा दूलहन अँगरे को डेंग कर घर के अंदर आ जाते है।
अँगना मे दूलहा दूलहन को तीन बार घुमाया जाता है और मड़वा के नीचे चटाई बिछाकर दोनो को बिठाया जाता है।
दूल्हन की माँ, बड़ी चाची, छोटी चाची अपनी पारी-पारी से दूलहा दूलहन लुमता एंव दूलहे के जीजा को हलदी एंव तेल लगाती है।
तितरी कुड़ी भी यह प्रक्रिया कर सकती है।
दूल्हा दूल्हन को मड़वा के नीचे तीन चक्कर लगवाया जाता है और उनके गंठबंधन खोल दिये जाते है।
दूल्हन को कमरे मे ले जाते है और दूल्हा बारतीयो सँग वापस डेरा चला जाता है।
बंदानी की रसम लडकी पछ
गाँव के प्रधान ( मंझी हाडाम ) और जग मंझी को बुलाया जाता है। वे मडवा के नीचे बैठकर शराब पीते है और चरचा करते है। इसके बाद दूल्हन के पिता से बली के लिये बकरी की माँग रखते है।
मड़वा के नीचे बकरी की बली चढा दी जाती है।
दूल्हन की बड़ी बहन या बुआ बकरी की सर को चावल वाली पतरी मे उठाकर कमरे मे रख आती है और बली स्थल को साफ कर गोबर लगाती है फिर रँगौली बनाकर पटीये से ढक देती है ताकि उसे कोई पैर न दे।
मंझी हाडाम दो कलसी मे सिँदूर लगाते है और तीतरी कुड़ी कलसी मे पानी भरकर लाती है।
दो अलग अलग चूल्हे मे दो हड़िया चढाई जाती है और उसमे कलसी का पानी डाल दीया जाता है।

दूल्हन के परिवार वाले दूल्हन एंव दूल्हे को बुलाकर उनहे चावल तौलने को कहते है। दोनो एक दूसरे के आँख बंद कर डालिये ( टौकरी ) से उचित मात्रा मे चावल निकालकर अपने अपने  सूप मे रखते है।
दूलहा या तो दूल्हन की सूप की गठरी तोड़ दी जाती है पहचान के लिए।
दोनो अपना अपना सूप उठाकर एक साथ अपने अपने नाम के हड़िये मे चावल डाल देते है और जौहार करते है।
अब दूलहा दूल्हन लुमता एंव दूलहे के जीजा को बंदानी के लिए मड़वा के नीचे तीन चक्कर लगवाकर बिठा दिया जाता है।
बंदानी शूरू होने से पहले दूल्हन के माता पिता सभी मेमहानो को धोती और शाड़ी देते है।
मंझी हाडाम दूल्हा दूल्हन लूमता एंव दूलहे के जीजा को बंदानी देकर बंदानी की शुरूआत करते है।
बारी-बारी से सभी मेमहान बंदानी देते है। दूल्हन को सबसे ज्यादा बंदानी दी जाती है।
बंदानी होने के बाद दूल्हा दूल्हन लुमता और दूल्हे के जीजा मड़वा के तीन चक्कर लगाकर अंदर कमरे मे चले जाते है। फिर दूलहा लुमता एंव जीजा डेरा चले जाते है।
दूल्हन के जीजा बंदानी के सामान को उठाकर कमरे मे रख देते है और उसकी जिम्मेदारी दूल्हन के पिता को देते है।
दूल्हा दूल्हन लुमता एंव दूल्हे के जीजा को बुलाकर खाना खिलाया जाता है।
कूछ देर बाद बारातीयो और सारतीयो को खाना खिलाया जाता है। खाने मे चावल एंव बकरी का मांश दीया जाता है। केवल बकरी के धड़ के हिस्से का मांश ( जिसकी बली दी गयी थी ) 
बाराती अपने डेरा चले जाते है और मंझी हाडाम एंव जग मांझी को बुलाकर उनहे खाना खिलाते है उनके सम्मान मे। बराती दोनो का धन्यवाद करते है और उनसे पतीले एंव कारा ( कडाही ) वापस ले जाने की विनती करते है।
विदाई का सम्मारोह
विदाई करने की त्यैयारी की जाती है ।
दूल्हा लुमता एंव दूल्हे के जीजा बरातीयो संग मड़वा मे पहुँचते है। दूलहन के चाचा जेठा और अन्य रिशतेदार एंव सभी गाँव के लोग मड़वा मे जमा होते है।

इधर कमरे मे दूल्हन की माँ दूल्हन के मुँह मे गूड़ और एक रूपय रखती है। दूल्हन गूड़ और पैसे को अपने माँ के हाथो पर उगल  देती है। माँ गूड़ को खा लेती है और पैसे को धोकर रख लेती है।
वर वधू एंव बाराती सारातीयो को जौहार कर घर के बाहर निकलते है। वर वधू  मंझीथान मे एक लौटा पानी डाल कर आते है। समधी समधीन आपस मे मिलते जूलते है। सभी एक दूसरे को जौहार करते है और बाराती वाले विदा लेते है।
दूलहन के साथ उसकी सहेली बड़ी बहन या बुआ और गाँव से दो औरत एंव दो लड़के साथ जाते है।
दूलहन की माँ एक तूक और एक चौकरी मे दीयाड़ा के साथ बंदानी का समान अपने अनुसार भेजती है।
लमुती बूढी अपने साथ एक किलो ( मि शेर ) मूढ़ी, एक साल के पत्तते की कटोरी मे हल्दी एंव लकड़ी का कंघा ले जाती है।
आगमन
दूल्हा दूल्हन को लेकर अपने गाँव पहुँचता है और सभी गाँव के छोर पर रूक जाते है। ढोल बाजे बजते हुए।
रायबार हाडाम दूल्हा के घर वालो को इतला देते है।
दूल्हे की माँ, चाची, बुआ, फूफा और बहन स्वागत के लिए जाते है।
दूल्हे की माँ सबसे पहले दूल्हे का पैर धोती है फिर लुमते की फिर आखरी मे दूल्हन की।
जीस पानी से दूल्हन के पैर धौये जाते है वह पानी दूल्हे की माँ रख लेती है।
इसके बाद दूल्हे की बड़ी चाची एंव छोटी चाची अपनी बारी-बारी से दूलहे लुमते एंव दूलहन की पैर धोती है।
तितरी कुड़ी एक चटाई बिछाती है और दूल्हे की माँ उस पर बैठ जाती है।
दूल्हे की बड़ी बहन दूल्हे को माँ के पास लाती और जौहार करती है। फीर दूल्हा अपनी माँ को जौहार कर उनकी गोद पर बैठ जाता है।
माँ दूल्हे का मूँह धूलाकर गूड खिलाती है फिर मूँह धूलाकर पानी पीलाती है।
लूमता को भी गूड खीलाया जाता है और पानी पीलाया जाता है।
अंतीम मे दूल्हे की बड़ी बहन दूल्हन को लाती है और जौहार करती है।
दूल्हन दूलहा के माँ को जौहार कर उनकी गोद पर बैठ जाती है। फिर उसे भी मूँह धूलाकर गूड खिलाया जाता है और पानी पीलाया जाता है।

दूलहे की बड़ी चाची एंव छोटी चाची भी इसी प्रक्रीया को अपनी बारी-बारी से करती है।
दूलहे की बड़ी बहन या बुआ दूल्हे दूल्हन एंव लुमता को गाँव के हर घर ले जाती है और गाँव वाले उनहे गुड़ या चीनी खीलाते है।
इस प्रकार चलते हुए दूल्हा दूल्हन और लुमता घर के दरवाजे पर पहुँचते है।
आरती ( दूलहा के घर पर )
दूलहे की माँ दूल्हा दूल्हन और लुमता की आरती उतारती है फिर तीनो को हल्दी लगाकर दूलहन को कंघी लगाती है।
दूलहा अपनी माँ को हल्दी लगाता है उसके बाद लुमता लगाता है।
दूलहन अब अपनी सास को हलदी और सिँदूर लगाती है फिर कंघा करती है।
दूलहे की बड़ी चाची और छोटी चाची अपनी बारी बारी से दूलहा दूलहन और लुमता की आरती करती है और हल्दी लगाती है।
दूलहा अपनी दोनो चाची को हलदी लगाता है। लुमता और दलहन भी दूलहे की चाची को हलदी लगाती है।
दूलहे की बड़ी बहन एक ड़कने मे अँगरा ले कर आती है दूल्हा दूल्हन के सामने रखती है।
लुमती बुढ़ी दूलहे की माँ को एक मोटा भेलडे की लकड़ी देती है। उस लकड़ी को अँगरा मे तीन बार घुमाती है और अँगरे के बीच मे ठोकती है फिर हातो से आशिरवाद लेती है।
दूलहे की बड़ी बहन अँगरा मे पानी डाल देती है और दूल्हा दूल्हन अँगरा को ड़ेग कर घर के अंदर आ जाते है।
लड़की पछ की तरफ से आये मेहमानो के पैर धौये जाते है।
दूलहा एंव दूलहन को अँगना मे मड़वा के नीचे तीन बार घूमाकर चटाई पर बिठा दिया जाता है।
दो तितरी कुड़ी दूलहा दूलहन लुमता एंव दूल्हन के साथ आई महिलाओ के पैर धोती है।
जिस पानी को दूल्हे की माँ ने पहले अपने साथ रखा था उस पानी को वह छत पर फ़ेक आती है।
दूलहे की माँ फिर से दूलहा दूलहन को हलदी लगाती है।

बड़ी बहन दूलहा दूलहन एंव लुमता को मड़वा मे तीन चक्कर लगवाकर कमरे मे ले जाती है।
कमरे मे ले जाते वक्त दूलहे की बड़ी बहन शरारत करती है। बड़ी बहन खूद कमरे मे घूस जाती है और दरवाजा बंद कर देती है।
दरवाजा खोलने के बदले मे दूलहे की बड़ी बहन दूल्हन से तोफा माँगती है और वादा करने पर ही दरवाजा खोलती है।
अंदर जाने के बाद उनको चटाई पर बिठाया जाता है और उनका गठबंधन खोल दीया जाता है।
बंदानी ( लड़का पछ )
अगले दिन दूलहे के पिता बंदानी के लिये मंझी हाडाम एंव जग मांझी को बुलाते है। मड़वा के नीचे बैठकर शराब पीते है और चरचा करते है।
कूछ देर बाद मंझी हाडाम और जग मांझी बकरी का बली देते है।
मायाँग पाँजा
मायाँग पाँजा के लिए लड़की पछ से दो लोग और लड़के पछ से दो लोग मड़वा मे जमा होते है।
इसके बाद दूलहे की बड़ी बहन मड़वा स्थल को साफ करती है और गौबर लगाती है फिर रंगोली बनाकर उसे पटिये से ढ़क देती है।
बंदानी की रसम ( लड़के के घर पर )
दूल्हा दूल्हन के गठबंधन बाँधकर उनको बंदानी के लिये मड़वा मे लाया जाता है। उनको तीन चक्कर लगवाकर पटीये पर बिठाया जाता है।
मंझी हाड़ाम दूलहा एंव दूलहन को बंदानी देकर बंदानी की रसम की शूरूआत करते है।
मेहमान बारी-बारी से दूलहा दूलहन लुमता और दूल्हे के जीजा को बंदानी देते है। सबसे ज्यादा बंदानी दूलहे को मिलती है।
बंदानी के बाद दूलहा दूल्हन मड़वा के तीन चक्कर लगाकर कमरे मे जाते है। कमरे मे दूल्हे की बड़ी बहन उनका गठबंधन खोल देती है।
फिर दूल्हा दूल्हन अपने कपड़े बदलते है और उनके कपड़े निरमा से धौये जाते है। दूलहे की बड़ी बहन अपने भाई के कपड़े धोती है और उनसे तौफे मे कुछ माँगती है।
कपड़ा सूखने के बाद उनको कपड़ा पहनाया जाता है। 

दूल्हा दुल्हन के हाथ मे बाँधे गये आम के पत्ते को खोला जाता है। 
दूल्हे के जीजा दूल्हा दुल्हन को दातुन देते है। दूल्हा दुल्हन दातुन करते है। इसके बाद उनके सर पर मिट्टी लगाया जाता है। इसके बाद दुल्हन दूल्हा को नहलाती है।
दूल्हे के पिता के एंव सभी परिवार वालो  के पैर धौये जाते है। दूल्हे का भाई  दुल्हन को साल की कटोरी से पानी डालता है।
दुल्हन अपने ननद के पैर धौती है और उनके पैर पकड़कर रखती है जबतक ननद उसे तौफे मे कुछ देने का वादा नही करते। दुल्हन अब अपने देवर के पैर धौती है और उनके पैर पकड़कर रखती है जबतक देवर उसे तौफे मे कुछ देने का वादा नहीं करते। यह रस्म होने के बाद दुल्हा अपनी पत्नी को लौहे की चूड़ी पहनाता है।
दुल्हा दुल्हन चावल पकने वाली हड़ियाँ में चट्टू चलाते है। खाना बनने के बाद सभी भायाद को खाना देते है। इसके बाद दुल्हन अपने पति को खाना खिलाती है। दुल्हा खाना खाने के बाद अपनी पत्नी को खाना खिलाता है।
खाना-पीना हो जाने के बाद दूल्हे की माँ दुल्हन, लुम्ती बूढ़ी और बारीत कोड़ा को विदा करती है।
दूसरे दीन दुल्हा अपने जीजा या एक लड़के के साथ अपनी पत्नी को लेने मायके जाता है। अपने साथ एक बकरी भी ले जाता है। बकरी का बली दीया जाता फिर मीट-भात बनाकर दुल्हन की सहेलीयो को खीलाया जाता है।
अब दुल्हन को विदा किया जाता है। दुल्हन को छोड़ने के लिए उसकी सहेली या दीदी या बुआ या जीजा साथ जाते है।
इस तरह से शादी अब पूरी हो जाती है और दोनो पती-पत्नी की तरह साथ रहते है

सोहराय पर्व

सोहराय पर्व पूष महीना में मनाया जाता है जो दिसंबर और जनवरी के बीच पड़ता है।
तारीख तय करने का तरीका
मंकर सक्रांती को ध्यान मे रख कर तारीख तय किया जाता है। सोहराय पर्व चार दिन तक मनाया जाता है और यह मंकर सक्रांती से पहले की जाती है। नियम यह है की कूछ गाँवो मे पर्व की शूरूआत रविवार के दिन से होती है तथा कुछ गाँवो मे पर्व की शुरूआत बुधवार के दिन से होती है।
तय दिन से एक हफता या दो हफता पहले लोग अपने घरो की साफ-सफाई करते है और घर की पुताई करते है साथ मे कपड़े और बरतनो की साफ-साफाई करते है।
उसी हफते मे लोग नहा-धोकर अपने अपने घरो मे हड़िया बनाने की तैयारी करते है। चावल को पका कर तीन हड़िये मे रखा जाता है और उसमे रसायन मिलाकर हफते भर के लिए छोड़ दीया जाता है।
सोहराय पर्व का पहला दिन
सोहराय पर्व की शुरूआत नहाने-धोने एंव पूजा सामग्री की साफ-सफाई के साथ होता है। इसमे लोग अपने बाल दाढ़ी एंव नाखून काटते है और बरतनो की सफाई करते है।
 आवशयक सूचना
नहाने-धोने एंव परब की शूरूआत अलग-अलग गाँवो अलग-अलग दिन होता है। किसी गाँव मे लोग पर्व की शूरूआत रविवार के दिन से करते है अथवा दूसरे गाँव मे लोग पर्व बुधवार के दीन से करते है। इसका  उद्देसय यह है कि एक गाँव के लोग दूसरे गाँव के लोगो को आमंत्रित कर सके या अपने परिजनो को आमंत्रित कर सके।
इधर सुबह-सुबह गाँव का मँझी-हाड़ाम सभी के घर जाता है और हर एक घर से एक मुरगी की माँग करता है।
नहा-धोकर लोग दोपहर मे खाना खाते है और पूजा के लिए तैयारी करते है।
शाम मे घर की महिलाएँ ढेकी मे अरवा चावल पीसती है और अरवा के आटे से पीठा बनाती है।
पूजा करने की जिम्मेदारी घर के बड़े सदस्यो की होती है। घर के सदस्य जो पूजा करते है वह दिन भर उपास करते है और जमीन मे बिछाली बिछाकर ही सोते  है।
पूजा करने का वक्त

रात मे लोग अपने-अपने घरो मे पूजा करते है। पूजा मे गूजरे हूए बड़े बुजुरगो को याद किया जाता है।
पूजारी साल के पत्ते को धोता और पूजा स्थल पर रखता है। इसके बाद मंत्र जाप करते हुए अपने गूजरे हूए बूजुरगो की याद मे उनके लिए साल के पत्ते के उपर पीठा रखता है  फिर साल के पत्ते की कटोरी से थोड़ा-थोड़ा हाड़ी पूजा सथल पर गिराता है और सूख सांती की कामना करता है।
आवशयक सूचना
पूजारी उतने ही पत्ते और पीठा रखता है जितने उनके बूजुरग थे अथवा जितना उन्हे अपने पीढी मे याद हो। अगर सात तो सात पत्ते और सात पीठा अगर पाँच तो पाँच पत्ते और पाँच पीठा।
इधर मँझी हाड़ाम और गाँव के सभी लोग गोट-टाड मे इक्कटठा होते है। गोट-टाड मे मँझी-हाड़ाम पूजा करते है। पूजा मे मुरगियो का बलि चढ़ाया जाता है और बँगा से गाँव की सूख-सांती की कामना करते है। पूजा होने के बाद चावल और मुरगा बनाया जाता है। लोग खा पीकर अपने घर आ जाते है।
सोहराय पर्व का दूसरा दिन
मँझी हाड़ाम और गाँव के कूछ लोग सुबह-सुबह ढ़ोल-नगाड़े बजाते हूए घर-घर जाते है और गाय बछड़े एँव बैलो को जगाते है।
अब गाँव के लोग अपने-अपने घरो मे पूजा की तैयारी करते है। घर की बेटी अँगना से लेकर दरवाजे तक गोबर लगाती है और उसपर रँगोली बनाती है। पूजा स्थल पर एक मंडोली भी बनायी जाती है।
पूजा करने की जीम्मेदारी जिसने ली है वह सुबह उठकर मुँह-हाथ धोता है और एक ओखली मे धान कूटकर पीसता है। अब पूजारी नहाने के लिए तलाब या नदी जाता है नदी या तलाब किनारे एक चूवाड़ी बनाता है। पूजारी नहाकर चुवाड़ी से पानी भरकर अपने साथ लाता है। घर मे महिलाएँ पीसे हुए आटे से पीठा बनाती है।
शाम मे सभी लोग अपने-अपने घरो मे पूजा करते है । पूजारी पूजा करने के लिए बैठता है। पूजारी को पूजा की सामग्री दी जाती है। सामग्री मे पीठा, अरवा चावल, सिँदूर, साल का पत्ता, एक मुरग और बड़ी कटोरी मे पानी होता है।
पहले की तरह पूजारी साल के पत्ते को धोकर पूजा स्थल पर रखता है और मंत्र जाप करते हूए गूजरे हूए बूजरगो की याद मे पत्ते के उपर पीठा रखता है।

एक लोटे मे हाड़ी निकालकर हाड़ी को साल के पत्ते से थोड़ा-थोड़ा कर पूजा सथल पर मंत्र जाप करते हूए गीराया जाता है। गुजरे हुए बूजुर्गो को याद कर उनसे आशिरवाद माँगा जाता है।
पूजा स्थल के पास मंड़ोली मे अरवा चावल रखा जाता है और मुरगे के सर पर सिँदूर लगाकर उसके चोच को चावल पर दो -तीन बार छूआकर मुरगे की बली दी जाती है।
पूजारी घर के बाहर जमीन की सीमा मे एक काले रंग का मुरगा का बली देता है। इसे सीमा मुरगा कहा जाता है। इसे घर के सदस्य बहार पका कर खा लेते है।
अब रात मे पूजा के लिए तैय्यारी की जाती है। नया हड़िया मे पानी चावल और मंड़ोली मे दीया गया बली वाला मुरगी को डालकर खीचड़ी बनाया जाता है। खीचड़ी बनने के बाद पूजारी पहले पूजा करता है इसके बाद ही घर के सदस्य खचड़ी को खाते है।
पूजा पहले की तरह ही होता है। पूजा सथल पर साल के पत्ते रखे जाते है और मंत्र जाप करते हूए हर पत्ते पर थोड़ा-थोड़ा खीचड़ी रखा जाता है अपने गुजरे हुए बुजरगो की याद मे और उनसे आशिरवाद माँगते है।
पूजारी एंव अनय नीयम पालन करने वालो के लिये अलग से पीठा बनाया जाता है। पीठा मे बली का मुरगी का सर होता है। मेहमानो के लिये भी अलग से खाना बनाया जाता है लेकिन पूजा की खचड़ी केवल घर के सदस्य और चुनीनदा रिसतेदार जैसे दामाद, दामाद के परिवार वाले, बुआ को ही दीया जाता है।
आवशयक सूचना
सुबह होने से पहले खीचड़ी को खा कर खतम करना आवशयक है। अगर खतम ना हो तो मड़ोली मे गढ्ढा बनाकर खिचड़ी को गाड़ दिया जाता है और हड़िया को पानी डालकर साफ कर दीया जाता है। एक दूसरी आवशयक प्रक्रिया जिसमे बली की मुरगी और बली का मुरगा के बचे हूए अंश जैसे पंख और अनय ना खाये जाने वाले अंश को जला कर खतम कर देना जरुरी है। 

सोहराय पर्व का तीसरा दिन ( बेलखूटा )

सूबह-सूबह मंझी-हाड़ाम और गाँव के कूछ लोग ढोल-नगाड़े बजाते हूए घर घर जाकर गाय बैलो को जगाते है।
गाँव के लोग बेलखूटा और पूजा करने की तैय्यारी करते है। पूजा मे सामिल होने वाली महिलाएँ सुबह नहा धोकर चूलहा जलाती है। चूलहे मे हड़िया चढाकर उसमे चावल और पानी डाला जाता है और उसे उबलने के लिए छोड़ दीया जाता है। पीठा एंव अन्य वंयजन भी बनाये जाते है।

इधर गाँव की कूलही मे बेलखूटा के लिए गड़ढे खोदे जाते है। गड़ढे थोड़े-थोड़े अंतराल पर खोदे जाते है। गड़ढे मे बास गाड़कर बास मे गेंदा का फूल, बैलून और पैसे बाँधे जाते है। गायो बैलो एंव बछड़ो को नदी या तलाब ले जाकर नहलाया जाता है। नहलाकर उनको घर लाया जाता है।
मँझी हाड़ाम और गाँव के लोग ढोल-नगाडे बजाते हूए घर-घर जाते है और बैलो को जगाते है। गेंदा फूल का माला और धान का माला बनाया जाता है। गेंदा फूल का माला गायो बैलो और बछड़ो के गले मे पहनाया जाता है तथा धान का माला गायो और बैलो के सिंघ पर बाँधा जाता है।
शाम मे गाँव के लोग अपने-अपने घरो मे पूजा करते है। हड़िया से हाड़ी निकालकर पूजारी एक साल के पत्ते से थोड़ा-थोड़ा कर पूजा स्थल पर मंत्र जाप करते हूए हाड़ी गिराता है
पूजा होने के बाद लोग अपने-अपने घरो से बैलो को निकालते है और कूलही मे खूटे पर बाँध देते है।
इसके बाद मँझी हाड़ाम और गाँव के सभी लोग तैयार होते है। पुरुष अपने सरो पर साड़ी से पगड़ी बाँधते है और नयी धोती एंव गंजी पहनते है। महिलाएँ नयी साड़ी पहनती है। तैय्यार होने के बाद पुरूष, महिलाएँ, बच्चे एंव सभी कूलही मे आते है। बेलखूटा के लिए पूरूष अपने साथ डंडे और सूप लाते है। सूप को ढ़ाल की तरह इसतमाल किया जाता है।
ढ़ोल नगाड़े बजाते हूए बेलखूटा का प्रांरमभ होता है। बैलखूटा मे लोग अपनी-अपनी बारी से बैलो को ललकारते है। अगर बैल को गुस्सा आ जाए तो वह सिंह से मारने की कोशिश करता है और लोग बचने की कोशिश करते है। यह खेल सपेन मे होने वाले बूल-फाइट की तरह होता है।
बेलखूटा होने के बाद लोग नाचते-गाते मँझी हाडाम के घर पर एकट्ठा होते है और वहाँ पर शाम तक ड़ोम नाच करते है। डोम नाच के बाद लोग अपने-अपने बैलो को पानी छीड़ककर अपने घर ले जाते है।
पूजारी और नीयम पालन करने वालो का उपास खतम होता है और वे अब कूछ भी खा सकते है। मेहमान अंतीम बार सभी से मेल-मिलाप कर विदा लेते है।

सोहराय पर्व का चौतथा दीन

चौतथे दिन पर्व समाप्त हो जाता है। इस दिन मँझी हाड़ाम सभी गाँव वालो के घर जाकर उनसे एक लौटा हड़ियाँ माँगता है।

नन्हा मेहमांन

साधोड़ी ( गोद-भराई रस्म )

बच्चा जब सात महीने का हो जाता है तब साधोड़ी की रस्म की जाती है। रस्म का दीन तय करने के लीए लड़की की माँ ससुराल वालो के यहाँ जाती है। दीन तय होने पर ससुराल वाले और मायके वाले तैयारी करते है।
रस्म के दीन लड़की की माँ और सारे रिशतेदार ससुराल वाले के यहाँ जाते है। ¬लड़की की माँ अपने साथ स्वादिषट व्यंजन लाती है। व्यंजन में खीर, मिट-भात, रसगुल्ले इत्यादि होता है।
ससुराल वाले भोजन की पूजा करते है और पति-पत्नी को चटाई पर बिठाकर उन्हे खाना दीया जाता है। मेहमानो के लिए अलग से खाना बनाकर दीया जाता है।
दूसरे दीन मेहमानो को नदी ले जाया जाता है। पुरुष एक तरफ महिलाएँ दूसरी तरफ। नहाने के बाद दोपहर में खाना खाकर सभी ससुराल वालो से विदा लेते है।

गीदरा जन्म (बच्चे का जन्म )


बच्चा जन्म होने के दीन से लेकर पाँचवे दीन पर मँझी हाडाम घर-घर जाकर सबको बच्चा जन्म होने की जानकारी देते है और उनहे नामकरण की रस्म में शामिल होने के लिये आमंत्रित करते है।
लपीत( नाई ) को बुलाकर गाँव वाले लपीत से अपने बाल दाढ़ी और नाखून कटवाते है। इसके बाद वे नहाने जाते है। लपीत सब को कटहल के पत्ते में थोड़ा सा तेल देता है। बच्चा को ड़ोम बूढ़ी नहला देती है। बच्चे के माता-पिता  सुबह से उपास करते है और नहाने के बाद खाने खाते है। बच्चा एंव माता-पीता को मायके का मीट-भात दीया जाता है। उनको मायके से नया कपड़ा भी मिलता है।
बच्चे की जन्म की खुशी में सभी मेहमानो को शाम में घर पर बुलाकर नीम दा मड़ी दीया जाता है। इसी बीच बच्चे का नामकरण किया जाता है। मेहमान माता पिता से पूछते है कि बच्चे को किस नाम से पुकारा जाय। दादी या माता पीता बच्चे का नाम रखते है। मेहमानो को बच्चे का नाम बताया जाता है और उसी  समय से लोग बच्चे को उसके नाम से पुकारते है।
इसके बाद जब बच्चा एक्कीस  दीन का हो जाता है तब माँ-बाप बच्चे को लेकर मायके जाते है।
टू बी कोनटीनियुड...........

मूँह जूठन

जब बच्चा सात महीने का हो जाता तब बच्चा का मूँह जूठन किया जाता है। मूँह जूठन के लिए बच्चे के नाना नानी ससुराल वालो को नये कपड़े देते है और बच्चे को नये कपड़े के साथ एक कासा का थाली देते है।
मूँह जूठन के दीन नया हँड़िया में खीर बनाया जाता है। बच्चे की थाली में खीर निकालकर पूजा किया जाता है। पूजा सथल पर गोबर, धान, पावा, पैसा और किताब रखा जाता है। फिर बच्चे को पूजा सथल बिठाया जाता है। सभी बच्चे का इंतजार करते है कि वह पहले कोन सी चीज छूएगा। माना जाता है कि बच्चा जिस चीज को पहले छूता है वह उसी चीज में धनी या महान बनता है।
पूजा के बाद बच्चे को खीर खिलाकर बच्चे का मूँह जूठन कराया जाता है। उस दिन से बच्चा अब कुछ भी खा सकता है।














SUBH AWSAR (सुभ अवसर) SUBH AWSAR (सुभ अवसर) Reviewed by Prasanta Hembram on Friday, October 23, 2020 Rating: 5

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